Introduction
जब भी हम किसी विषय, घटना, व्यक्ति, संस्था या देश के बारे में अध्ययन करते हैं, तो अक्सर एक शब्द सुनने को मिलता है — “Historical Background” यानी “ऐतिहासिक पृष्ठभूमि”।
लेकिन यह शब्द वास्तव में क्या दर्शाता है? इसका महत्व क्या है? और यह किसी भी विषय को समझने में कैसे मदद करता है? इस ब्लॉग में हम इन सभी सवालों के जवाब देंगे।
Historical Background का अर्थ क्या है?
Historical Background का हिंदी में अर्थ होता है – “किसी घटना, व्यवस्था या स्थिति से पहले की ऐतिहासिक घटनाएं या परिस्थितियाँ, जिन्होंने उसे प्रभावित किया।”
सरल शब्दों में:
“किसी विषय को सही से समझने के लिए उसके अतीत की कहानी को जानना ही Historical Background है।”
Historical Background क्यों महत्वपूर्ण है?
कारण | विवरण |
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समझ को गहराई देता है | किसी विषय की जड़ों को समझना संभव होता है। |
तथ्यों का संदर्भ देता है | क्यों और कैसे हुआ, इसका कारण समझ आता है। |
निर्णयों का मूल्यांकन होता है | पूर्व की गलतियों/सफलताओं से सीख मिलती है। |
विकास की दिशा दिखाता है | वर्तमान स्थिति तक पहुंचने का सफर दिखता है। |
Historical Background के उदाहरण:
1. भारत का स्वतंत्रता संग्राम:
अगर हम 1947 में भारत की आज़ादी को समझना चाहते हैं, तो उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में हमें 1857 की क्रांति, ब्रिटिश राज, गांधी जी के आंदोलन, विभाजन आदि को जानना होगा।
2. भारतीय संविधान:
भारतीय संविधान की पृष्ठभूमि में ब्रिटिश शासन, गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट, मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार, कैबिनेट मिशन योजना आदि घटनाएं आती हैं।
3. संस्थाओं या संगठनों का निर्माण:
किसी यूनिवर्सिटी, कोर्ट या संस्था की स्थापना के पीछे के सामाजिक, राजनीतिक या ऐतिहासिक कारणों को Historical Background कहा जाता है।
Historical Background कैसे लिखा जाता है?
किसी भी रिपोर्ट, रिसर्च या निबंध में Historical Background लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखें:
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सम्बंधित पुरानी घटनाओं का उल्लेख करें
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वर्तमान स्थिति से उनका संबंध जोड़ें
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मुख्य तारीखें और घटनाएं बताएं
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कारण और परिणाम स्पष्ट करें
Historical Background का उपयोग कहाँ होता है?
क्षेत्र | उपयोग |
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शिक्षा | इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति आदि विषयों में |
समाचार | किसी मुद्दे की गहराई समझाने के लिए |
प्रोजेक्ट/थीसिस | विषय का बेसिक फ्रेमवर्क देने के लिए |
न्यायिक व्यवस्था | केस के संदर्भ समझाने के लिए |
भारत में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने व्यापार के बहाने प्रवेश किया, लेकिन धीरे-धीरे उसने शासन की बागडोर अपने हाथ में ले ली।
1773 से 1858 तक का समय वह दौर था जब कंपनी ने भारत पर शासन किया। इस काल को “कंपनी का शासन” कहा जाता है।
कंपनी शासन की शुरुआत – 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट:
1773 का रेगुलेटिंग एक्ट (Regulating Act, 1773):
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यह ब्रिटिश संसद का पहला कानून था जो कंपनी के कार्यों को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था।
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बंगाल के गवर्नर को “गवर्नर जनरल ऑफ बंगाल” बनाया गया।
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पहला गवर्नर जनरल बना: वारेन हेस्टिंग्स
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कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई।
महत्व:
यह कानून कंपनी के व्यापारिक चरित्र को बदल कर उसे एक राजनीतिक शक्ति में बदलने की शुरुआत था।
पिट्स इंडिया एक्ट 1784 (Pitt’s India Act):
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ब्रिटिश सरकार ने कंपनी के प्रशासन पर अधिक नियंत्रण स्थापित किया।
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एक Board of Control की स्थापना हुई।
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कंपनी के कामकाज को दो भागों में बांटा गया – राजनीतिक और व्यापारिक।
गवर्नर जनरल्स और प्रमुख सुधार:
लॉर्ड कार्नवालिस (1786-1793):
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सिविल सेवा प्रणाली (Civil Services) की शुरुआत।
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न्यायिक सुधार और स्थायी बंदोबस्त (Permanent Settlement) लागू किया।
चार्टर अधिनियम 1793 क्या था?
चार्टर अधिनियम 1793 ब्रिटिश संसद द्वारा पारित एक कानून था, जो भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासनिक अधिकारों को बढ़ाने और उसे नियंत्रित करने के उद्देश्य से बनाया गया था।
यह अधिनियम “रेगुलेटिंग एक्ट 1773” और “पिट्स इंडिया एक्ट 1784” की निरंतरता में आया था।
चार्टर एक्ट 1793 कब और क्यों लाया गया?
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यह अधिनियम ब्रिटिश संसद द्वारा 1793 ई. में पारित किया गया।
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इसका उद्देश्य था:
- कंपनी के शासकीय अधिकारों को बढ़ाना
- भारतीय प्रशासन में ब्रिटिश सरकार की भूमिका को स्पष्ट करना
- पहले से लागू कानूनों में सुधार करना
चार्टर अधिनियम 1793 की मुख्य विशेषताएं (Main Features):
1. कंपनी को भारत पर शासन का अधिकार 20 वर्षों के लिए फिर से मिला
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ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार और शासन के अधिकार अगले 20 वर्षों के लिए बढ़ा दिया गया।
2. गवर्नर जनरल की शक्तियाँ और बढ़ीं
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गवर्नर जनरल को अब विशेष कार्यपालिका शक्तियाँ प्राप्त हुईं।
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उसकी अनुमति के बिना प्रेसीडेंसी (बंबई, मद्रास) कोई स्वतंत्र युद्ध या संधि नहीं कर सकती थी।
3. कंपनी के अधिकारियों को वेतन ब्रिटिश सरकार देगी
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अब गवर्नर जनरल और अन्य उच्च अधिकारियों के वेतन ब्रिटिश सरकार के खजाने से दिए जाने लगे।
4. कंपनी ब्रिटिश सरकार को लाभांश देगी
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कंपनी को अपने शुद्ध लाभ का एक हिस्सा ब्रिटिश सरकार को देना था (10% तक)।
5. कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स की शक्ति यथावत
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कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (Company का प्रबंधन मंडल) को बरकरार रखा गया, लेकिन उस पर ब्रिटिश Crown का नियंत्रण बढ़ा।
महत्व (Importance of Charter Act 1793):
विषय | विवरण |
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प्रशासनिक सुधार | गवर्नर जनरल की सत्ता को और स्पष्ट किया गया |
आर्थिक नियंत्रण | कंपनी के लाभ का हिस्सा ब्रिटिश सरकार को मिलने लगा |
राजनीतिक नियंत्रण | प्रेसीडेंसी को स्वतंत्र निर्णय लेने से रोका गया |
दीर्घकालिक अधिकार | कंपनी को 20 साल और शासन करने की छूट दी गई |
लॉर्ड वेलेजली (1798–1805):
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सहायक संधि नीति (Subsidiary Alliance) लागू की।
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मराठों और मैसूर के खिलाफ युद्ध लड़े।
लॉर्ड विलियम बेंटिक (1828–1835):
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सती प्रथा का अंत किया (1830)।
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शिक्षा में सुधार (मैकोले की सिफारिश पर अंग्रेजी शिक्षा लागू)।
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बंगाल में सिविल और आपराधिक न्याय प्रणाली को पुनर्गठित किया।
लॉर्ड डलहौजी (1848–1856):
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Doctrine of Lapse (व्यपगत सिद्धांत) लागू किया।
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भारत में रेलवे, टेलीग्राफ और डाक प्रणाली की शुरुआत।
1857 की क्रांति – कंपनी शासन का अंत:
1857 का विद्रोह (First War of Independence):
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यह विद्रोह कंपनी के अन्याय, अत्याचार और आक्रामक नीतियों के खिलाफ था।
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मेरठ से शुरू होकर पूरे उत्तर भारत में फैल गया।
परिणाम:
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कंपनी शासन की समाप्ति हो गई।
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ब्रिटिश संसद ने “Government of India Act 1858” पारित किया।
1858: क्राउन का शासन शुरू – कंपनी शासन का अंत
भारत सरकार अधिनियम 1858 (Government of India Act 1858):
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भारत का शासन अब सीधे ब्रिटिश महारानी (Queen Victoria) के अधीन आ गया।
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कंपनी भंग कर दी गई।
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गवर्नर जनरल को अब “वायसराय” कहा जाने लगा (पहला वायसराय: लॉर्ड कैनिंग)।
कंपनी शासन (1773-1858) की विशेषताएँ:
विशेषता | विवरण |
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उद्देश्य | व्यापार से शासन की ओर रूपांतरण |
प्रशासन | गवर्नर जनरल और बोर्ड के माध्यम से नियंत्रण |
कानून | ब्रिटिश संसद द्वारा बनाए गए |
नीति | सैन्य विस्तार, सहायक संधि और व्यपगत सिद्धांत |
अंत | 1857 की क्रांति और 1858 अधिनियम के बाद समाप्त |
1773 से 1858 तक का समय भारत के इतिहास में एक निर्णायक युग था।
इस अवधि में ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने व्यापारिक हितों को पीछे छोड़कर एक पूर्ण प्रशासनिक सत्ता के रूप में शासन किया।
1857 की क्रांति ने इस शासन को हिला दिया और अंततः भारत का शासन ब्रिटिश सरकार के सीधे नियंत्रण में चला गया।
निष्कर्ष (Conclusion):
Historical Background किसी भी विषय की नींव है। यह वर्तमान को अतीत से जोड़ने का माध्यम है। चाहे वह देश का इतिहास हो, किसी संगठन की उत्पत्ति, या कोई राजनीतिक आंदोलन — इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को समझे बिना उसका गहराई से मूल्यांकन करना संभव नहीं होता।