वॉटरफॉल मॉडल क्या है?
वॉटरफॉल मॉडल सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग के लिए वॉटरफॉल मॉडल सिस्टम डेवलपमेंट लाइफ साइकिल (sdlc) का एक प्रसिद्ध और अच्छा वर्जन है waterfall model linear तथा sequential model हैं, इसका अर्थ यह है कि एक डेवलपमेंट तब तक शुरू नहीं हो सकता जब तक कि उसका पिछला वाला phase पूरा नहीं हो जाता है हम वॉटरफॉल मॉडल में phase पूरा हो जाता है तो हम अगले phase मैं चले जाते हैं लेकिन वहां पर पिछले phase में नहीं जा सकते हैं ।
वाटरफॉल में एक पेज का आउटपुट दूसरे फेज के इनपुट की तरह कार्य करता है वॉटरफॉल मॉडल में निम्नलिखित 5 फेज होते हैं।
(1) Requirement
(2) Design
(3) Implementation
(4) Verification
(5) Maintenance
1- Requirement phase
वॉटरफॉल मॉडल का सबसे पहला phase हैं इस पेज में सिस्टम की आवश्यकताओं को एकत्रित तथा डॉक्यूमेंट किया जाता है यह फेस बहुत crucial होता है क्योंकि इस फेज पर अलग phase आधारित होते हैं।
2- Design phase
Design Phase यह इस तथ्य पर आधारित होता है कि सॉफ्टवेयर का निर्माण किस प्रकार होगा डिजाइन पेज का मुख्य उद्देश्य सॉफ्टवेयर सिस्टम का ब्लूप्रिंट तैयार करना है जिससे कि आने वाले पेज पर किसी प्रकार की कोई दिक्कत का सामना ना करना पड़े और रिक्वायरमेंट फेज में जो भी रिक्वायरमेंट है उनका हल निकाल लिया जाए ।
3- Implementation phase
इस पेज में हार्डवेयर सॉफ्टवेयर तथा अप्लीकेशन प्रोग्राम्स को इंस्टॉल किया जाता है तथा डेटाबेस डिजाइन को इंप्लीमेंट किया जाता है इससे पहले कि डेटाबेस डिजाइन को इमली मेंट किया जाए सॉफ्टवेयर को टेस्ट इनकोडिंग तथा डीबगिंग प्रोसेस से होकर गुजरना पड़ता है वाटरफॉल में यह सबसे लंबे समय तक चलने वाला फेस है।
4- Verification phase
इस फेज में सॉफ्टवेयर को वेरीफाई किया जाता है और यह इवालुवेट किया जाता है कि हमने सही प्रोडक्ट बनाया है इस फेज में विभिन्न प्रकार की टेस्टिंग की जाती है तथा सॉफ्टवेयर के हर एरिया में चेक किया जाता है माना अगर हमने सॉफ्टवेयर को अच्छी तरह वेरीफाई नहीं किया है तो इसमें कोई डिफेक्ट रह जाता है तो इसका इस्तेमाल कोई नहीं करेगा इसलिए वेरिफिकेशन असत्य महत्वपूर्ण है वेरिफिकेशन का एक लाभ यह है कि इससे सॉफ्टवेयर को निष्फल होने का रिस्क कम हो जाता है।
5 Maintenance phase
यह वाटरफॉल का सबसे अंतिम फेज है।जब सिस्टम बनकर तैयार हो जाता है तथा यूजर उसका प्रयोग करना शुरू कर देते हैं तब जो समस्याएं उस में आती हैं उनको टाइम टू टाइम हल करना पड़ता है तैयार सॉफ्टवेयर को समय अनुसार उसका ख्याल रखना तथा उसे मेंटेन रखना ही मेंटेनेंस कहलाता है।
SDLC में निम्न तीन प्रकार के maintenance होते हैं-
1 corrective maintenance
2 adaptive maintenance
3 perfective maintenance